6/24/2008

महात्मा गांधी को चाहिए उनसे मुक्ति!

वीरेन्द्र पाण्डेय


अब कोई संकट नहीं है। कम से कम गांधी को लेकर। न दक्षिण अफ्रीका में, न ही भारत में। कांग्रेस में भी कोई दुविधा नहीं है, बापू को लेकर। कोई संकट भी नहीं है। यही वजह है कि जो आग्रह महात्मा ने रखे थे, कांग्रेसी उसे छोड़ चुके हैं। गांधी चाहते थे कि शराब न पी जाए। स्वदेशी चीजें, कपड़े प्रयोग हों। देश की शिक्षा स्वदेशी भाषा में हो। राजभाषा-राजकाज की भाषा हिन्दी हो। कांग्रेसी ठर्रा से बोदका तक अपनी पसंद की मजे से गटक रहे हैं। खद्दर क्या, इस्तेमाल की कोई भी स्वदेशी वस्तु बड़े कांग्रेसी हाथ नहीं लगाते। बेटे-बेटियां विदेशों में पढ़ रहे हैं। काम-काज और राज-काज उन्हीं अंग्रेजों की भाषा में हो रहा है, जिन्हें गांधी ने भारत छोड़ने पर मजबूर किया था। कांग्रेस ने गांधी बापू और उनकी सीख से पल्ला झाड़ लिया है, क्योंकि गांधी का नाम सत्ता के शिखर पर पहुंचाने वाली लिफ्ट नहीं रही। उन्होंने अब अपने गांधी गढ़ लिए हैं। इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक। जब जैसे गांधी की जरूरत पड़ी, उसे आगे कर मतलब साध लिया। गांधी ने गोरी चमड़ी के अंग्रेजों को भारत से भगाया था, पर कांग्रेस ने गोरी चमड़ी की भी एक गांधी गढ़ ली है। फिर से अंग्रेजी राज का अनुभव कर रहे हैं। गांधी को भी कांग्रेस से कोई परेशानी नहीं है। गांधी ने जिस दिन लोक सेवक संघ बनाने की सलाह दी थी, उसी दिन उन्होंने कांग्रेस को तिलांजली दे दी थी। वैसे भी बापू कभी कांग्रेस के चवन्नी के सदस्य नहीं रहे।

गांधी ने कांग्रेस को और कांग्रेस ने गांधी को मुक्त कर दिया। नाथूराम गोडसे ने बापू को जीवनमुक्त कर दिया। गोडसे ने तो गांधी को एक ही बार मारा, पर ऐसे दावेदार हैं जो गांधी को समझने, जानने और मानने का दावा करते हैं। इन्होंने ही दुनिया को बताया कि गांधी ने कांग्रेस भंग कर लोक सेवक संघ बनाने की राय दी थी, पर इन बापू के मानने वालों ने भी कांग्रेस नहीं छोड़ी। अपितु कांग्रेसी नेताओं के दामन थाम कर सत्ता प्रतिष्ठिानों की सीढ़ियां चढ़ी। अधिकारों की मलाई तबियत से खाई। इन्होंने पूर्वाग्रहों की पोटली कांख में दाब रखी है। आंखों पर झूठ का गहरा काला चश्मा चढ़ा रखा है। देश की छोटी से लेकर सबसे बड़ी अदालत ने कह दिया है कि नाथूराम गोडसे संघ का स्वयंसेवक नहीं था, न ही गांधी हत्या से संघ का कोई संबंध है। पर बार-बार यही दोहराया जा रहा है। झूठ के ये पैरोकार हर बार पहले से ज्यादा तेज स्वर में घोषणा करते हैं कि संघ का आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं है। ये सुविधापूर्वक भूल जाते हैं कि संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार कांग्रेस के सदस्य और पदाधिकारी थे। कांग्रेस के आंदोलनों में जेल गए। राजद्रोह का मुकदमा उन पर चला। उनकी प्रेरणा से हजारों स्वयंसेवकों ने आजादी में अपना योगदान दिया। एक बार जब करीब साल भर की सजा के बाद रिहा हुए डॉ. साहब के सम्मान समारोह की अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की।

आंखों में झूठ का चश्मा चढ़ाए, कानों में पूर्वाग्रह की रूई ठूंसे हुए गांधी के इन झंडाबरदारों को यह सत्य न कभी दिखाई देता है न सुनाई देता है। गोडसे ने बापू को एक ही बार मारा, पर गांधी के ये चेले रोज-रोज उनकी हत्या कर रहे हैं। गांधी के ये शिष्य आज उस ओर पैर रखकर भी नहीं सोते, जिधर संघ की शाखा लगती है। लेकिन गांधी को संघ की शाखा को भेंट देने से परहेज नहीं था। पहली बार अपने पट्ट शिष्य जमनालाल बजाज के साथ वर्धा में बापू संघ स्थान पर गए। यह संघ शिक्षा वर्ग बजाज जी की ही जमीन पर लगा था। बापू 1 घंटा 30 मिनट यहां रहे। जिज्ञासाएं की, तिथि थी 25 दिसंबर 1934। बापू ने संघ को पहली भेंट दी प्रेम और शांति के दूत ईसा मसीह के जन्मदिन पर। अगले दिन उन्होंने डॉ. हेडगेवार से मुलाकात की इच्छा प्रकट की। मुलाकात हुई, सार्थक रही। उसके बाद कम से कम दो बार गांधी संघ के कार्यक्रम में गए। हर भेंट से गांधी संतुष्ट हुए संघ से जैसे सवाल आजतक पूछे जा रहे हैं। कभी गुरुदेव रविन्द्रनाथ के सामने नहीं रखे गए। स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन से भी नहीं पूछे गए। आज भी तर्क की नयी-नयी कसौटी लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कसा जाता है। संघ हर बार कुंदन साबित हुआ है। चेले फिर नयी कसौटियों के साथ उपस्थित होते रहते हैं।

जब गांधी अंग्रेजों की तोप से टकरा रहे थे, संघ भी उनके साथ खड़ा था। अपने लोहारखाने में अंग्रेजों की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए एकता-अखंडता के शस्त्र ढाल रहा था। इसे देखने के लिए सच्चाई की आंखें चाहिए। भारत बड़ा भावुक देश है। जिसे महान मानता है, उसे भगवान का दर्जा दे देता है, इसमें सुविधा रहती है। महान आदमी के आचरण का अनुशरण नहीं करना पड़ता। साथ ही पंडे-पुजारियों का भी जुगाड़ हो जाता है। पर संघ यह मानता है कि मनुष्य कितना ही महान हो, उसके स्खलित होने, चूकने की गुंजाइश बनी रहती है। यही कारण है कि संघ ने भगवा ध्वज को अपना गुरू माना है। गांधी भी अपवाद नहीं हैं। जवाहरलाल नेहरू के प्रति उनका अतिरिक्त मोह का होना, बा पर अपनी इच्छा लादना, उनकी इच्छा के विरुध्द सुभाषचंद्र बोस का कांग्रेस अध्यक्ष बनना गांधी पचा नहीं पाए। अंतत: सुभाष जी को इस्तीफा देना पड़ा। इन्हें महान बापू की मानवीय कमजोरी ही कहा जाएगा।

संघ की नजरों में पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिलाना मनुष्य से चूक होने के उदाहरण हैं। फिर भी संघ की दृष्टि में बापू महान आत्मा थे। संघ ने उन्हें अपनी प्रात: स्मरण की प्रार्थना में शामिल किया है। जैसे फिल्मी कलाकारों के एजेंट होते हैं, जो उनके समय का संयोजन करते हैं, उनकी अनुमति के बिना कलाकार न तो किसी फिल्म में काम करता है न ही शूटिंग के लिए तारीख देता हैं। वैसे ही ये गांधी के स्वयंभू एजेंट हो गए हैं। यही दुनिया को बताते हैं कि बापू ने जो किया उसका क्या अर्थ है। आज बापू होते तो क्या करते क्या नहीं करते। बाकी सबसे तो गांधी मुक्त हो गए, पर एजेंटों की कैद में आज भी छटपटा रहे हैं। बापू अगर इन एजेंटों से मुक्त हो पाए तो जरूर छत्तीसगढ़ आएंगे। जैसे पहले आए थे। इसी छत्तीसगढ़ के पंडित सुंदरलाल शर्मा के अछूतोद्वार के क्षेत्र में अपना गुरू माना था।

अब गांधी छत्तीसगढ़ आएंगे तो बस्तर जरूर जाएंगे। उनके मन में जो आदिवासियों के लिए काम न कर पाने की ग्लानि है, उसे दूर करेंगे। यह बात जरूर है कि गांधी जब यह जानेंगे कि जिस शराब के वे विरोधी हैं, वह आदिवासियों के रोजमर्रा जीवन का आवश्यक अंग है। वैसे ही मांसाहार और हिंसा जंगल में हर कदम पर मिलती है, क्योंकि जंगल में वही अपना अस्तित्व कायम रख सकता है, जिसके पास ताकत हो। ये सब बातें गांधी को दु:खी करेंगी। पर जब उन्हें पता लगेगा कि वनवासी माओवादी हिंसा के सामने सलवा-जुडूम चला रहे हैं। बस्तर की सात लाख की आबादी में सलवा-जुडूम आंदोलन में चार हजार से चालीस हजार कार्यकर्ता शामिल हो रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं के हाथ में हथियार तो होते हैं, पर हिंसा के लिए नहीं, अपितु जंगल में राह की बाधा हटाने के लिए। यह शांति अभियान उन वनवासियों द्वारा चलाया जा रहा है, जो बापू के अहिंसा के दार्शनिक पक्ष को नहीं जानते। शराब और मांसाहार की बुराई को भी नहीं जानते। उनका सलवा-जुडूम उनके मन की सजह इच्छा है। वे नक्सली हिंसा का जवाब असहयोग से देने की नीति पर चल रहे हैं। गांधी 139 साल की उम्र में भी अपनी तर्ज के इस आंदोलन से जुड़ना चाहेंगे। हे राम, बापू के जान-पाण्डों को सद्-बुद्धि दो ताकि वे गांधी को अपने चंगुल से आजाद करें। बापू जुडूम में शामिल होंगे तो नेता के अभाव में कभी-कभी जुडूम आंदोलन थोड़ा बहुत बहक जाता है, नहीं भटक पाएगा। गांधी के सानिध्य में आदिवासी भी बुराई से मुक्त हो सकेंगे। गांधी को समझने, जानने, मानने वाले कृपा करके गांधी को अपनी कैद से आजाद करो ताकि गांधी सलवा-जुडूम से जुड़ सकें।
(लेखक जगदलपुर के पूर्व विधायक हैं)

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