11/03/2007

अरूण यह मधुमय देश हमारा-3

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त रचना

सर्वप्रथम मुझे यह निबंध जिस शीर्षक पर लिखने का सुअवसर मिला है-“ अरूण यह मधुमय देश हमारा” अर्थात् कभी न समाप्त होने वाला (मधु) शहद जैसा मिठास देश हमारा” जिसमें विभिन्न प्रकार की हमारे पूर्वजों से मिली विरासतें व प्राचीनकाल की संस्कृति, जो आज भी विद्यमान है। भारत वर्ष में भिन्न-भिन्न प्रान्तों से भिन्न-भिन्न लोग रहते हैं। जिसकी अपने-अपने प्रान्त की भाषायें हैं । अपने-अपने राज्य की अपनी-अपनी कला संस्कृति है । हमारे भारत वर्ष में विभिन्न प्रान्तों की विभिन्न बोलियां बोली जाती है । इस विशाल देश में इतनी बोलियों के बावजूद इतनी जातियां जो अपनी-अपनी रीतिरिवाजों के मानने वाले हर मजहब के लोग होने के बावजूद भी जो दुनिया के किसी भी क्षेत्र में ऐसी मिशाल नहीं होगी, जो इतने विशाल देश में इतनी जातियों के लोग रहते हुए भी एकता व भाईचारे की जीती जागती एक तस्वीर है। जहां हर त्यौहार हर जाति के लोग अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। वह इतनी जाति के लोग एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल होकर एकता व भाईचारे का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जब-जब इस देश में कोई संकट आया है सबने मिलकर उसका मुकाबला किया है और एकता की मिसाल कायम की है। हमारा भारत वर्ष कभी सोने की चिड़िया कहलाता था जिसे अंग्रेजों ने धीरे-धीरे लूटकर खाली कर दिया था।

हमारे भारत वर्ष में कई प्राचीन विरासतें हैं। जैसे-अजंता एलोरा की गुफाएं, हैदराबाद की चारमीनार, दिल्ली की कुतुबमीनार, हुमायूं का मकबरा, लाल किला, इंडिया गेट, ग्वालियर का किला, सुन्दर बन, राष्ट्रीय उद्यान गुजरात, नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली उत्तरांचल, छत्रपति टर्मिनल, महाराष्ट्र नीलगिरी माउंटन रेल्वे, तामिलनाडु फूलों की घाटी, राष्ट्रीय उद्यान, सांची बौद्ध स्मारक मध्यप्रदेश एवं हमारे देश में जो पूरे विश्व विख्यात हैं । आगरा का ताजमहल तो वास्तुशिल्प का एक अनुपम उदाहरण है। जिसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की कब्र (याद में )पर बनाया गया। इसकी निर्माण 1631 ईसवी में आरंभ हुआ और 1653 ई. में पूर्ण हुआ। इसे बनने में पूरे 22 वर्ष लग गये ।

ताजमहल की कला नक्काशी इतनी सुन्दर है कि देखते ही बनती है। जिसकी दीवार पर इतनी सुन्दर नक्काशी उकेरी गई है जो कि पूरे विश्व में कहीं नहीं । इसी तरह अजमेर, राजस्थान मैं “ढ़ाई दिन का झोपड़ा” नाम से बना एक स्मारक जैसा महल जिसके दरवाजों पर ऐसी नक्काशी बनी है जो देखते ही बनती है। जिसका दरवाजा एक ही चट्टान (पत्थर) का बना है और उस पर उर्दू, अरबी भाषा मे कुरान लिखी (उकेरी) गई है। जो मात्र ढाई दिन में पूरा महल बनाया गया जिस पर उनका नाम “ढाई दिन का झोपड़ा” पड़ा है।

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिसे में स्थित खजुराहो का मन्दिर जो पूरे विश्व में विख्यात है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। जो देखता है वह देखता ही रह जाता है । बस मानो ये पत्थर की मूर्तियां कब अपने से बातें करने लग जाये । इतनी बारीकी और सुन्दरता से उन मूर्तियों को उकेरा गया है कि पूछिए मत। इसी तरह कलकत्ता का हावड़ा ब्रिज एवं पूरी में कोणार्क का सूर्य मन्दिर एवं कश्मीर की झील पहाड़ी जिसे देखने-घूमने पूरी दुनिया से लोग आते हैं, जिसे धरती का स्वर्ग (जन्नत) का नाम दिया गया है।

हमारे भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ में गुरू घासीदास बाबा की जन्मस्थली गिरौधपूरी धाम है। जो छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला के राजिम अंतर्गत है।(वस्तुतः यह राजिम में नहीं अपितु बलौदाबाजार तहसील में है ) इस क्षेत्र की जनता की आस्था में माननीय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने देश की राजधानी दिल्ली में बने सबसे ऊंची 77 मी. ऊंची कुतूरमीनार से पांच मीटर ऊंचे जैतखाम्भ का आधार व्यास 60 मीटर होगा। आधार तल पर बनने वाला सभागृह में करीब 2000 लोग एक साथ बैठ सकेंगे। जैतखाम्भ को सुन्दर आकार देने के लिए इसमें 07 तल बनेंगे तथा प्रत्येक तल पर एक-एक बाल्कनी होगी जिसमें खड़े होकर आस-पास की हरियाली व ऊँची-ऊँची पहाडियों की सुन्दरता का अवलोकन कर सकेंगे।

हमारा भारत वर्ष आजादी के पूर्व अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेंजो ने अपनी राजनीति - फूट डालो और राज करो वाली नीति अपनायी थी । उन्हीं दिनों हमारे बापू गांधी जी, चाचा जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादर शास्त्री, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल आदि जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा खोला तथा एक नारा दिया जिसे भारत छोड़ो आन्दोलन नाम दिया गया। जिसकी चिन्गारी पूरे भारतवर्ष में आग की तरह फैली थी और एक एक भारत वासी उस आन्दोलन मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिये। यह चिन्गारी इतनी तेजी से फैली कि अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये और अंग्रेजों को हारकर इस देश को छोड़कर जाना पड़ा।

देश आजाद होने पर हमारे देश के नौजवानों ने धीरे-धीरे मेहनत और लगन से देश को आत्मनिर्भर बना दिया। आज हमारे देश में अनेकानेक फैक्ट्रियां और कलकारखाने हैं जो अपने देश में ही उत्पादन करके विदेशों में निर्यात कर रहे हैं और विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं तथा खेती-किसानी में आत्मनिर्भरता है। हर क्षेत्र में इतना अधिक उत्पादन कर रहे हैं कि सूई से लेकर हवाई जहाज का निर्माण हमारे देश में हो रहा है। कई कारखाने, कई उद्योग हमारे देश में स्थापित है। वैज्ञानिक हमारे देश में वैज्ञानिक चमत्कार से पूरे देश मे शोहरत हासिल कर रहे हैं। फिर चाहे वह एक छोटे से रेडियों से लेकर, टीवी हो या कम्प्यूटर, हर क्षेत्र में अग्रणी है।

कला एवं सस्कृति
भारत का फिल्म उद्योग विश्व के प्राचीनतम बड़े तथा आधुनिकतम फिल्म उद्योंगों में से एक है। भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 14 भारतीय तथा क्षेत्रीय भाषाओं में लगभग 500 कला एवं संस्कृति पर आधारित फिल्में बनती हैं और अब तो दूरदर्शन धारावाहिकों विशेषकर धार्मिक, कथा, मनोरंजन प्रधान धारावाहिकों ने फिल्म निर्माण की संख्या को चुनौती देना प्रारंभ कर दिया है। भारतीय फिल्मों तथा दूरदर्शन धारावाहिकों का सम्पूर्ण देश मे होने के साथ ही उनका लगभग 85 अन्य देशों में निर्यात भी किया जाता है। इनमें अधिकतर संख्या हिन्दी तथा तमिल भाषा की फिल्मों की होती है। अनेकोनेक प्रस्तुतियां अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में डब करके विदेशों में प्रदर्शित की जाती है। भारत सरकार ने उनके समूचित निर्यात हेतु वर्ष 1963 में भारतीय चलचित्र निर्यात निगम की व्यवस्था की है जो देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने के साथ ही भारतीय फिल्म उद्योग की प्रतिभाओं को विदेशी फिल्म बाजार में प्रस्तुत कर रहा है। भारत में सिनेमा आये 105 वर्ष हो गये हैं । 1913 के पूर्व निर्मिल मूक व लघु फिल्मों की संख्या सैकड़ों में थी लेकिन दादा साहब फालके ने 1913 से फीचर फिल्म बनाने का सिलसिला शुरू किया।

भारतीय संगीत कला
हिन्दुस्तानी संगीत इस शैली में गायक-गायिका को प्रमुखता दी जाती है हीराबाई बरोड़कर इस शैली की प्रमुख गायिका है। कर्नाटक शैली इस शैली की गायिका से कहीं अधिक वाद्य यंत्रों के वादन को प्रमुखता प्रदान की जाती है। इस शैली के प्रमुख कलाकार श्री सेमनगुड़ी, मल्लिकार्जून, मंसूर, पालघाट, अय्यर, रामभागवत आदि अनेक हैं।

पंडवानी शैली :- पद्मभूषण तीजन बाई, व ऋतु वर्मा।
गजल गायिकी – पद्मभूषण जगजीत सिंह, पंकज उधास, पिनाज मसानी, चित्रासिंह, भूपेन्द्र मिताली, अनूप जलोटा,

विशिष्ट वाद्ययन्त्र एवं उनके वादकः-
सितार-भारत रत्न पंडित रविशंकर उस्ताद, विलायत खां, शाहिद परवेज, सुजात हुसैन, मणिलाल नाग, जया विश्वास, निखिल बैनर्जी, देवव्रत चौधरी, शशि मोहन भट्ट

सरोद-अली अकबर खां, अमजद अली खां, बुद्धदेवदास गुप्ता, नरेन्द्रनाथ धर, गुरूदेव सिंह, विश्वजीत राव चौधरी, अभिषेक सरकार, मुकेश शर्मा, उस्ताद अलाउद्दीन खान, वेदनारायण, चन्दनराय। अमान एवं अयान।

शहनाईः- उस्ताद बिसमिल्ला खान, अली अहमद हुसैन

तबलाः- उस्ताद अल्ला रका, उस्ताद जाकिर हुसैन,
बासुरीः- पं. हरिप्रसाद चौरसिया, राजेन्द्र प्रसन्ना,
संतूरः- शिव कुमार शर्मा, तरूण भट्टाचार्य
वीणाः- एस. बालचन्द्रन, रमेश प्रेम, गोपाल
सारंगीः- पंडित रामनारायण,
वायलिनः- गोविंद स्वामी पिल्लै,


नाम - नगमा अंजुम
कक्षा - 11वीं
पता - माता सुन्दरी हायर सेकेंडरी स्कूल न्यू बस स्टैण्ड रायपुर।
मो. न. – 99265- 41543

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