9/10/2007

चुनौतीपूर्ण है तालिबानों का पुन: संगठित होना


अफगानिस्तान में कट्टरपंथी इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने वाले तालिबानी पुन: सक्रिय हो उठे हैं। तालिबानों ने अफगानिस्तान में अपनी माँगें पूरी करवाने हेतु इन दिनों अपहरण का साम्राज्य स्थापित कर रखा है। अफगानिस्तान की सरकार के सदस्य हों या वहाँ के विकास हेतु काम करने वाले विदेशी संस्थानों के लोग, पत्रकार हों या स्वयं सेवी संगठनों के सदस्य सभी इनके निशाने पर हैं। तालिबनों द्वारा इन लोगों का अपहरण कर इन्हें मानव ढाल के रूप में प्रयोग किया जा रहा है तथा इनके दम पर अपनी माँगें पूरी कराने की कोशिश की जा रही है। इस प्रकार के अपहरण के पश्चात तालिबानी लड़ाके आमतौर पर अपने गिरंफ्तार किए गए तालिबानी विद्रोहियों को रिहा किए जाने की शर्त रखते हैं। इनका हौसला उस समय और बढ़ गया जबकि इनके द्वारा एक इतालवी पत्रकार को उसके ड्राईवर के साथ गत् 6 मार्च को हेलमंद नामक स्थान से अपहृत किया गया तथा अपने 5 सहयोगी तालिबानों की रिहाई के बदले में इतालवी पत्रकार को रिहा कर दिया गया। इसी पत्रकार के साथ अजमल नक्शबंदी नामक एक अफगानिस्तानी पत्रकार का भी अपहरण किया गया था। परन्तु चूंकि सरकार ने अजमल की रिहाई के बदले में तालिबानी विद्रोहियों को रिहा नहीं किया इसलिए अजमल को तालिबानों द्वारा मार डाला गया।

क्रूर तालिबानों द्वारा अपनी माँगें मानवाए जाने हेतु अपहरण किए जाने जैसा गैर इस्लामी व गैर मानवीय सिलसिला लगातार जारी है। गत् 19 जुलाई को तालिबानों द्वारा 23 दक्षिण कोरियाई ईसाई सहायता कर्मियों का अपहरण कर लिया गया था जिनमें अधिकांश औरतें व बच्चे शामिल हैं। अभी तक इनमें से दो कोरियाई नागरिकों 42 वर्षीय पादरी वे ह्वूग कू तथा 29 वर्षीय सिम शंगु मिन की निर्मम हत्या की जा चुकी है। इन अपहृत कोरियाई नागरिकों की रिहाई के बदले में तालिबानों द्वारा अपने 8 सहयोगी लड़ाकुओं की रिहाई की मांग की जा रही है। इसके पूर्व निमरोंज प्रान्त में 2 फ्रांसीसी राहतकर्मियों का अपहरण कर लिया गया था। यह फ्रांसीसी अफगानिस्तान में शिक्षा से संबंधित एक गैर सरकारी संस्था में कार्य कर रहे थे।

दक्षिण कोरियाई स्वयं सेवकों के अपहरण के ठीक अगले दिन यानि 20 जुलाई को अफगानिस्तान के 4 न्यायाधीशों का अपहरण कर लिया गया था। बाद में इन चारों बंधक न्यायाधीशों की लाशें ग़जनी प्रांत के देहमाक जिले से प्राप्त हुईं। इनकी हत्या की जिम्मेदारी भी तालिबानी विद्रोहियों द्वारा स्वीकार की गई। इसी प्रकार गत् माह दक्षिण अफगानिस्तान के कंधार प्रांत के पंजवई जिले में तालिबानी विद्रोहियों द्वारा जस्टिस क़ाजी नेमतुल्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई। तालिबानी लड़ाकुओं द्वारा क्रूरता एवं अमानवीयता की हदें यहीं समाप्त नहीं होतीं। इन्होंने अपने ही लिए काम करने वाले तथा मूल रूप से पाकिस्तान के रहने वाले एक तालिबानी गुलाम नबी की गला रेतकर हत्या कर डाली। तालिबानी लड़ाकुओं को संदेह था कि गुलाम नबी तालिबानों के साथ रहकर अमेरिकी सेनाओं को तालिबान के कमांडरों के बारे में महत्वपूर्ण एवं गोपनीय सूचनाएं दे रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि तालिबानों द्वारा गुलाम नबी का गला काटने के लिए 12 वर्षीय मासूम बच्चे का प्रयोग किया गया जिसके हाथों में तलवार देकर गुलाम नबी की गला रेतकर हत्या कराई गई। तालिबानों द्वारा इस वीभत्स घटना का वीडियो टेप भी जारी किया गया था।

दिन-प्रतिदिन अफगानिस्तान में बिगड़ते जा रहे इन हालात से न केवल अमेरिका या अफगानिस्तान की हामिद क़रंजई सरकार चिंतित है बल्कि तालिबानियों का क्रूरतापूर्ण व इस्लाम विरोधी व्यवहार पूरे मुस्लिम जगत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। तालिबानों का मत है कि अफगानिस्तान व इराक पर अमेरिका अपना कब्जा जमाए हुए है जिसे वे कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते। उनका कहना है कि जब तक विदेशी सेनाएं यहाँ मौजूद रहेंगी तब तक उनका खूनी संघर्ष इसी प्रकार जारी रहेगा। तालिबानों के अनुसार अमेरिकी सेना अथवा अमेरिका के इशारों पर चलने वाली अफगान सरकार के लिए काम करने वाले सभी लोग तालिबानों के दुश्मन हैं। यहाँ तक कि तालिबानी लड़ाके पड़ोसी देश पाकिस्तान की परवेज़ मुशर्रफ़ सरकार के विरुद्ध भी जेहाद का उदघोष कर चुके हैं। तालिबानों का मत है कि जनरल मुशर्रफ़ पाकिस्तान व पाकिस्तान से लगे क़बाईली क्षेत्र में अमेरिकी नीतियाँ लागू करने का जबरदस्त प्रयास कर रहे हैं जिसे वे सहन नहीं करेंगे।

दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश तक के लिए तालिबानी लड़ाकुओं का पुन: संगठित होना चिंता का विषय बना हुआ है। एक अनुमान के अनुसार इन हथियारबंद तालिबानों की संख्या लाखों में पहुंच गई है। राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अफगानिस्तान के तांजातरीन बिगड़ते हुए हालात पर चर्चा करने हेतु गत् दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति की आरामगाह कैंप डेविड में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद क़रंजई से मुलाकात की। बुश पहले ही यह कह चुके हैं कि अमेरिका आतंकवादियों को ढूँढने में आकाश व पाताल दोनों एक कर देगा। बुश यह चेतावनी भी दे चुके हैं कि यदि आवश्यकता पड़ी तो अमेरिकी सेना पाकिस्तान के संदिग्ध आंतरिक क्षेत्रों में सैन्य कार्रवाई करने से भी नहीं चूकेगी।

तालिबानी लड़ाकों की अमानवीय हरकतों के बीच कुछ परस्पर विरोधी बातें भी सामने आ रही हैं। उदाहरण के तौर पर तालिबानों व अमेरिकी नेतृत्व के मध्य जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ फंसे दिखाई दे रहे हैं। अर्थात् तालिबानों द्वारा मुशर्रफ़ को तो अमेरिका के पिट्ठु के रूप में देखा जा रहा है तथा उनके विरुद्ध भी जेहाद का नारा बुलन्द किया जा चुका है। जबकि अमेरिका द्वारा मुशर्रफ़ पर तालिबानों के प्रति नरमी व हमदर्दी बरतने का आरोप लगाया जा रहा है। इसी प्रकार राष्ट्रपति बुश व क़रंजई की मुलाकात में हामिद करंजई ने तो यह स्वीकार किया है कि ईरान अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में अफगान सरकार के साथ एक अच्छे सहयोगी की भूमिका अदा कर रहा है जबकि अमेरिका अफगानिस्तान के इस मत का विरोधी है। बुश प्रशासन का आरोप है कि ईरान अफगानिस्तान में अस्थिरता पैदा करने हेतु तालिबानी विद्रोहियों की सहायता कर रहा है। इसी प्रकार दक्षिण कोरियाई नागरिकों के अपहरण को लेकर दक्षिण कोरिया में तरह-तरह के मत व्यक्त किए जा रहे हैं। जहां अपहरण हेतु तालिबानी विद्रोहियों की समग्र निंदा की जा रही है वहीं एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो कोरियाई नागरिकों के अपहरण के लिए अमेरिका व उसकी नीतियों को ही जिम्मेदार मान रहा है। इस मत के पक्षधर कोरियाई नागरिकों का मानना है कि संकट की इस घड़ी में अमेरिका को ही सबसे आगे आना चाहिए तथा दक्षिण कोरियाई नागरिकों की रिहाई सुनिश्चित करनी चाहिए।

हालांकि अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान को इस वर्ष दस अरब डॉलर की सहायता दी जा रही है। जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान में सुरक्षा उपायों व सुरक्षातंत्रों को और अधिक सुदृढ़ करना है। परन्तु इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि अफगानिस्तान में चरमपंथी हमलों की संख्या में भी दिन प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। निर्दोष लोगों की मृत्यु दर भी लगातार बढ़ रही है। परन्तु इसके बावजूद सुखद समाचार यह आ रहे हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जगत में तालिबानों, इस्लामी आतंकवादियों, अलंकायदा आदि के प्रति आम मुसलमानों की हमदर्दी व समर्थन में असाधारण कमी आती जा रही है। पाकिस्तान के हाल के लाल मस्जिद घटनक्रम में भी यह देखा गया कि वहाँ कट्टरपंथी नेटवर्क से जुड़े सक्रिय रूढ़ीवादी लोगों द्वारा तो लाल मस्जिद पर पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई का विरोध किया गया जबकि आम पाकिस्तानी नागरिक इस आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को देखता रहा।

वास्तव में यदि दुनिया में मानवता, शांति व सद्भाव को कायम रखना है, वास्तविक इस्लाम को जिंदा रखना है तो हथियारबंद लड़ाकों के हाथों में इस्लाम की बागडोर को जाने से हरगिज रोकना होगा। तालिबानी विचारधारा या तालिबानों के क्रूरतापूर्ण कृत्य तंजीदियत या शैतानियत के तो प्रतिनिधि हो सकते हैं, सच्चे इस्लाम के प्रतिनिधि हरगिज नहीं।



तनवीर जाफ़री
(सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी)
22402, नाहन हाऊस
अम्बाला शहर। हरियाणा

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