7/12/2007

राजनैतिक घमासान के मध्य होता राष्ट्रपति का चुनाव


भारत में होने जा रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव हेतु नामांकन भरने की अन्तिम तिथि समाप्त होने के साथ ही चुनाव की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। देश की सत्तारूढ़ पार्टी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का सीधा मुकाबला निर्दलीय कहे जाने वाले प्रत्याशी तथा भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के मध्य होने जा रहा है। इस चुनाव में मतों की गणित के आधार पर यह साफ नज़र आता है कि बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग न होने की स्थिति में यूपीए प्रत्याशी प्रतिभा पाटिल के रूप में भारतवर्ष पहली बार अपने सर्वोच्च संवैधानिक पद तथा देश के प्रथम नागरिक के रूप में प्रतिभा पाटिल रूपी किसी महिला को आसीन होते देखने जा रहा है। राष्ट्रपति पद की चुनावी सरगर्मियों को लेकर पिछला महीना भारतीय राजनीति में काफी उथल-पुथल से भरा रहा। कहा जा सकता है कि देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर इतना विवाद व राजनैतिक दलों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले हथकण्डों का प्रदर्शन पहले कभी देखने को नहीं मिला।

सर्वप्रथम तो यूपीए की सबसे बड़ी घटक कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रपति पद हेतु ऐसा उम्मीदवार ढूंढने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा जिसके नाम पर कि सत्तारूढ़ यूपीए के अन्य घटक दल भी राजी हो सकें। प्रणव मुखर्जी, शिवराज पाटिल, अर्जुन सिंह तथा कर्ण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के नाम पर यूपीए के घटक दलों में सहमति न बन पाने के बाद कांग्रेस ने प्रतिभा पाटिल जैसी कमजोर परन्तु वफादार प्रत्याशी का चयन यह कहकर किया कि यूपीए पहली बार राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर एक महिला को आसीन होते हुए देखना चाहता है। यहाँ स्वाभाविक रूप से यह प्रश् उठता है कि यदि यूपीए वास्तव में किसी महिला को ही इस पद पर बैठे देखना चाहता था तो प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, कर्ण सिंह व शिवराज पाटिल जैसे नामों के चर्चा में आने की जरूरत ही क्या थी। शुरु से ही केवल दो-चार महिला नेत्रियों में से ही किसी एक का नाम चुना जा सकता था। लिहाजा यूपीए का प्रथम महिला राष्ट्रपति बनाए जाने का तर्क न सिर्फ खोखला बल्कि मात्र मजबूरी के तहत लिया फैसला नज़र आ रहा है। बेशक इस राजनैतिक उठा पटक के बीच भारत को महिला राष्ट्रपति मिलने की सम्भावना प्रबल हो गई है।

प्रतिभा पाटिल के नाम को लेकर कई प्रकार के आरोप भी लगने शुरु हो गए हैं जिनमें हत्या के एक मामले में अपने भाई की सहायता करने, घोटाला करने तथा अनियमितताएं बरते जाने जैसे कई मामले सामने आ रहे हैं। देश के सर्वोच्च पद पर संभावित रूप से बैठने वाली प्रथम महिला प्रतिभा पाटिल पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने का भी आरोप लग रहा है। परन्तु यूपीए ने इन सभी आरोपों को विपक्ष का दुष्प्रचार बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। जबकि मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने तीसरे मोर्चे का समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से भैरो सिंह शेख़ावत को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। इसमें कोई शक नहीं कि भैरो सिंह शेखावत जो कि वर्तमान में देश के उपराष्ट्रपति भी हैं प्रतिभा पाटिल से कहीं अधिक तजुर्बा रखने वाले व्यक्ति हैं। वे राजस्थान के मुख्यमंत्री सहित संगठन व सरकार के कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। परन्तु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता रह चुके होने के नाते वे यह भली-भांति जानते हैं कि तीसरा मोर्चा उनका समर्थन नहीं करेगा अत: उन्होंने स्वयं को भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी घोषित करने के बजाए निर्दलीय उम्मीदवार घोषित करना अधिक उचित समझा है।

राष्ट्रपति पद के वर्तमान चुनाव में जहाँ प्रत्येक राजनैतिक दल व घटक जबरदस्त राजनैतिक दाँव पेंच खेल रहे हैं वहीं महाराष्ट्र में अपना अच्छा प्रभाव रखने वाली क्षेत्री पार्टी शिवसेना ने भी कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा पाटिल को अपना समर्थन देने की बात कहकर अपनी पारंपरिक सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को भी स्तब्ध कर दिया है। शिवसेना का यह समर्थन केवल इस एक सूत्रीय मकसद को लेकर है कि प्रतिभा पाटिल मूल रूप से महाराष्ट्र की रहने वाली हैं तथा मराठा परिवार की बेटी हैं। इसके पूर्व शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार को भी प्रधानमंत्री पद हेतु अपना समर्थन देने की बात केवल इसलिए कह चुके हैं क्योंकि शरद पवार भी महाराष्ट्र से संबंध रखने वाले एक मराठा नेता हैं। शिवसेना द्वारा भारत के राष्ट्रपति पद के चुनाव के संबंध में उठाए गए ऐसे संकीर्णतापूर्ण कदम का यह पहला अवसर है जबकि क्षेत्रीयता के आधार पर यूपीए के घटक दलों से विपरीत विचारधारा रखने वाली पार्टी उसके किसी उम्मीदवार को अपना समर्थन दे रही है। ज्ञातव्य है कि शिवसेना अपने मराठा प्रेम के लिए पहले से ही कांफी चर्चित रही है। यहां तक कि उसे गैर मराठियों के विरुद्ध जहर उगलते भी कोई पछतावा नहीं होता। देश की एकता और अखंडता के पक्ष में इसे एक अच्छा कदम अथवा स्वस्थ सोच नहीं कहा जा सकता।

भारत रत्न डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम को लेकर भी राजनैतिक दलों के बीच जमकर घमासान हुआ। पिछले कई महीनों से भारत की कई सर्वेक्षण एजेंसियों द्वारा चलाए जा रहे सर्वेक्षण यह साफतौर पर बता रहे थे कि राष्ट्रपति पद हेतु आम भारतवासियों की पहली पसंद ए पी जे अब्दुल कलाम ही हैं। जाहिर है ऐसे में कोई भी दल कलाम के नाम को नकार पाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। परन्तु अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति कलाम ने अनेकों बार जिस दृढ़ता का परिचय दिया तथा भारतीय संसद को आईना दिखाने का जो प्रयास किया संभवत: देश के बड़े राजनैतिक दल इसीलिए इस बार उत्साहित होकर उन्हें पुन: राष्ट्रपति बनाने के पक्ष में नहीं थे। यह सही है कि हालांकि राष्ट्रपति कलाम ने अन्तिम समय में पहले अपने नाम पर आम सहमति होने तथा बाद में अपनी जीत सुनिश्चित होने की शर्त पर पुन: राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी परन्तु यह भी सत्य है कि कलाम द्वारा काफी पहले ही पुन: राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने हेतु इन्कार किया जा चुका था। राष्ट्रपति कलाम ने कहा था कि वे पुन: राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि पदमुक्त होने के बाद अपने प्रिय शिक्षण व्यवसाय को ही अपनाएंगे।

कलाम को पुन: राष्ट्रपति बनाए जाने की अपनी मुहिम में मैंने भी जहाँ देश के अनेकों सांसदों व राजनेताओं से समर्थन माँगा था वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद विजय दर्ड़ा से मिलकर जब मैंने यह निवेदन किया कि वे भी इस बात की कोशिश करें कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रपति पद के आगामी चुनाव में ए पी जे अब्दुल कलाम को ही यूपीए के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करें इस पर विजय दर्ड़ा ने मुझे बताया कि कलाम साहब से वे इस विषय पर व्यक्तिगत रूप से भी बात कर चुके हैं। वे पुन: चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते। ऐसा लगता है कि कलाम की इसी अनिच्छा का बहाना लेकर कांग्रेस ने किसी योग्य प्रत्याशी की तलाश करने के बजाए एक वंफादार प्रत्याशी का चयन करना अधिक उचित समझा। प्रतिभा पाटिल का नाम ऐसे ही नामों में से एक था जोकि वफादारी को ही योग्यता मानने वाले मापदण्ड पर पूरी तरह खरा उतर रहा था।

बहरहाल इस बात की प्रबल संभावना है कि भारतवर्ष पहली बार एक महिला को राष्ट्रपति के रूप में देखे। परन्तु जैसा कि यूपीए द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि यह कदम महिलाओं को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से तथा महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिए जाने के मकसद से उठाया गया है तो इस बात की भी जरूर उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद बुलाए जाने वाले संसद के प्रथम सत्र में ही महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि इसे संसद के दोनों सदनों को पारित भी कर देना चाहिए। यदि यूपीए ऐसा करती है, फिर तो राष्ट्रपति पद पर एक महिला उम्मीदवार को बिठाकर महिलाओं को आगे बढ़ाए जाने का उसका दावा किसी हद तक सही माना जा सकेगा। अन्यथा प्रतिभा पाटिल की उम्मीदवारी को महज मजबूरी के तहत सत्तारूढ़ यूपीए द्वारा लिया गया एक फैसला मात्र ही माना जाएगा।
तनवीर जाफ़री
22402, नाहन हाऊस
अम्बाला शहर। हरियाणा

1 टिप्पणी:

Sanjay Tiwari ने कहा…

यह मजबूरी नहीं है. सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति, नवीन चावला मुख्य चुनाव आयुक्त तो फिर सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से कौन रोकेगा. एक बार कलाम ने तो रोक दिया, क्या प्रतिभा पाटिल रोक सकेंगी?