8/18/2006

कुछ लघुकथाएँ

मन के सांप

आज रात खाना खाने के बाद उसका मन कैसा-कैसा होने लगा । वह मन ही मन बड़बड़ाया, “ये पत्नी भी अजीब है, मायके गई तो- आज सप्ताह होने को आया । उसे इतना भी ध्यान नहीं कि पति की रातें कैसे कटती होंगी ।” वह आकर अपने बिछावन पर लेट गया । नींद तो जैसे उसकी आंखों से उड़ चुकी थी । आज टी.वी. देखने को भी उसका मन नहीं हो रहा था। उसे ध्यान आया कि आज आँफिस में मिसेज सिन्हा कितनी खूबसूरत लग रही थी । कितनी सुन्दर साड़ी बांध रखी थी । साड़ी बाँधने का अंदाज भी गजब का था । क्या हँस-हँस कर बातें कर रही थीं । इस स्मरण ने उसे और बेचैन-सा कर दिया । उसे अपनी पत्नी पर क्रोध आने लगा, “यह भी कोई तरीका है । शादी के बाद औरत को अपने घर का ध्यान होना चाहिए ।”

वह जैसे-जैसे सोने का प्रयास करता, नींद वैसे-वैसे उसकी आंखों से दूर भागती जाती। इतने में उसकी दृष्टि सामने अलगनी पर जा टिकी, जहां उसकी पत्नी की साड़ी लापरवाही से लटकी हुई थी । उसे लगा जैसे उसकी पत्नी खड़ी मुस्करा रही है । वह उठा और अलगनी से उस साड़ी को उठा लाया और उसे सीने से लगा लिया। फिर एकाएक उसे चूम लिया । उसे लगा कि जैसे वह साड़ी नहीं, उसकी पत्नी है । उसने साड़ी को बहुत प्रेम से सरियाया और तह लगाकर अपने तकिए की बगल में रख लिया।

“मालिक !और कोई काम हो तो बता दीजिए फिर मैं सोने जाऊंगी।” अपनी युवा नौकरानी के स्वर से वह चौंक उठा । उसने चोर –दृष्टि से उसके यौवन को पहली बार भरपूर दृष्टि से देखा, तो वह दंग रह गया । आज वह उसे बहुत सुन्दर लग रही थी । उसे देखकर फिर न जाने उसका मन कैसा-कैसा होने लगा । अभी वह कामुक हो ही रहा था कि नौकरानी ने पुनः पूछा, “मालिक ! बता दीजिए न !”
“ तुम ऐसा करो तुम कहां उधर दूसरे कमरे में सोने जाओगी । यहीं इसी कमरे में सो जाओ । न जाने कोई काम याद ही आ जाए । जरूरत पड़ने पर तुम्हें जगा दूंगा । हां ! पीने के लिए पानी का एक जग और एक गिलास जरूर रख लेना । फिलहाल तो कोई काम याद नहीं आ रहा है ।”
“जी अच्छा ! ”

आज नींद उसकी आंखों से दूर थी । कभी पत्नी का खयाल कभी मिसेज सिन्हा का ध्यान, कभी नौकरानी यौवन का नशा। उसने अपने को बहलाने के विचार से कोई पत्रिका सामने आलमारी से निकाली । उसका पढ़ने में मन तो नहीं लगा । बस यूं ही उलटने-पलटने लगा । पत्रिका के मध्य में उसे किसी सिने-तारिका का ‘ब्लो अप,’ नजर आया । उसकी दृष्टि रुक गई । उसे लगा, वह सिने-तारिका हरकत करने लगी है । वह उसे देखता रहा । उसे लगा, वह मुस्करा रही है । वह भी मुस्कराने लगा । उसने उसे ब्लो अप का स्पर्श किया तो फिर जमीन पर आ गया । उसने पत्रिका बंद करके अक तरफ रख दी ।

वह पानी पीने के विचार से उठा । उसने देखा, उसकी नौकरानी उसकी नीयत से बेखबर गहरी नींद में सोयी हुयी है । उसकी आती-जाती सांसों से उसका हिलता बदन उसे बहुत भला लगने लगा । उसका मासूम चेहरा उसे लगा कि वह उसे चूम ले, किन्तु किसी अज्ञात भय से वह पीछे हट गया । वह सोचने लगा कि वह समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति है । कार्यालय में भी उसको आदर की दृष्टि से देखा जाता है । बाहरी आडम्बरों ने उसके मन को दबाया, किन्तु फिर मन था कि उसी ओर बढ़ा किन्तु एकाएक उसकी पत्नी की आकृति उभरती दिखाई दी । अब उसकी पत्नी के चेहरे पर मुस्कराहट के स्थान पर घृणा के भाव थे । वह सिहर गया । पुनः अपने पलंग पर लौट आया । नौकरानी को आवाज दी और पानी का गिलास देने को कहा ।

उसने पानी पीकर कहा, “देखो ! अब मुझे कोई काम नहीं है । तुम वहीं बगल के कमरे में जाकर सो जाओ । देखो ! अन्दर से कमरा जरूर बन्द कर लेना ।”

यह कहकर वह बाथरूम की ओर बढ़ गया बाथरूम मे लटका पत्नी का गाऊन उसे ऐसा लगा, पत्नी जैसे मुस्करा रही है और वह इस अर्द्धरात्रि में स्नान करने लगा ।


सतीशराज पुष्करणा
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दंडनीय

बाल न्यायालय । बच्चों का सुधारगृह । न्यायालय प्रवेश से एकदम भिन्न वातावरण, घरेलु-सा, परन्तु विधि-सम्मत प्रक्रिया ।

‘डरो नहीं बच्चे ! सच बताओ क्या हुआ था ?’ पितृ-स्नेह से मजिस्ट्रेट साहब ने पत्रावली टटोलते हुए पूछा । मैली नेकर व फटी कमीज में सिकुड़े अपचारी ने घिघियाकर हाथ जोड़ दिए, ‘बापू ने कमाना छोड़ दिया था हजूर ! हम दो दिनों से भूखे थे...... बस्स...... तीन किलो बाजरी लाया था पोटले में अऊर कुछ नहीं किया अन्नदाता !’

मजिस्ट्रेट साहब दंग । पास बैठे पीठ के अन्य सदस्य अंगरेज़ी में बोले, ‘जिस देश के बच्चों को बाजरी चुराने के लिए विवश होना पड़े, वहाँ दंड किसे दें ?’


हसन जमाल
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बॉय-बॉय

इवनिंग वॉक के दौरान एक दिन धर्म और राजनीति की मुलाकात एक सुंदर बाग में हो गई । भेंट के दौरान दोनों ने देश के राजनैतिक पर्यावरण, जलवायु और तापमान पर विशेष चर्चा की ।
इसके बाद बाग में टहलते-घूमते दोनों एक बार में जा पहुंचे । वहां राजनीति ने कॉकटेल तैयार किया और धर्म को आनंदित मुद्रा में आफर किया । धर्म बोला-“मैं स्वयं मैं एक नशा हूँ, मुझे इसकी क्या जरूरत है मुझे तो लोग-बाग आजकल विषैले सर्प की संज्ञा भी देने लगे हैं, फिर भी चलो तुम्हारा साथ दे देता हूँ । दोनों ने जाम से जाम टकराया ।
कुछ देर बाद, बार में ही-ही, बकबक करने के पश्चात मस्ती में झूमते दोनों बाहर निकले । इस बीच हँसी-मजाक के मूड में राजनीति ने धर्म से कहा-“कृपा करके मुझे मत डसना ।” धर्म भी क्यों चूकता, वह बोला-“प्यारे, मैं अगर साँप हूँ तो ये क्यों भूलते हो कि तुम उसका पिटारा हो । तुम तो उस मजमेबाज जादूगर की तरह हो, जो मजमें में अपने नेवले से मुझे लडाते हो और जब मै बेहोश हो जाता हूँ तो मुझे होश में लाकर फिर अपने पिटारे में बंद कर लेते हो ।” इसके बाद दोनों ने जमकर ठहाका लगाया और फिर मिलेंगे, बॉय-बॉय कहते हुए अपने-अपने मुकाम की ओर मस्ती भरी चाल से चल दिए ।


राम पटवा
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