3/09/2006

आज की कविता-1


पिंजरे में बंद तोता

पिंजरे में बंद तोता
सुन्दर दिखता है बहुते
उड़ते हुये तोते से
वह बोलता है मीठे-मीठे बोल
पुकारता है लोगों के नाम
गुनगुनाता है संस्कृत के श्लोक
बहुत सुन्दर है वह और
बहुत सुन्दर है उसकी बोली
मुग्ध हुँ ईश्वर की रचना से
पर क्षण भर भी खुला रखना
मंजूर नहीं पिंजरा
उसके स्वतंत्र हो जाने के भय से
भयभीत हूँ हर घड़ी
बंदी बनाने में ज्यादा खुशी है
या खुला आकाश बाँटने में
यह पाठ अभी मैंने नहीं पढ़ा है
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- विजय राठौर

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