1/09/2006

अंतरजाल पर आ रहा है हिन्दी का नया उपन्यास


जी हाँ, बात बिल्कुल सोलह आने सच है । जाने माने साहित्यकार और पत्रकार श्री गिरीश पंकज का महत्वपूर्ण उपन्यास कुछ ही दिनों में हिन्दी के पाठकों के सामने आ रहा है । वह भी सीधे अंतरजाल पर । नाम रखा है उन्होंने- “पॉलीवुड की अप्सरा” । अब केवल मुबंई में ही वालीवुड नहीं रह गया है । भारत के कमोबेश सभी राज्यों में एक-एक वालीवुड पनप रहा है । ग्लैमर के चकाचौंध में नयी पीढी की युवतियाँ कैरियर के बहाने लगातार ऐसे वालीवुड में उलझती जा रही हैं । और इसके साथ ही वहाँ पसर रहा है देह के आरपार देखने-दिखाने का मकडजाल । इस कथा-वस्तु को कई कोणों से पडताल करने वाले इस उपन्यास में कास्टिंग काऊच भी है और स्टिंग आपरेशन भी । फिल्म उद्योग की आड में फैलते यौन-व्यभिचार के पीछे के रहस्यों की परत-दर-परत पोल खोलती यह उपन्यास मूलतः एक व्यंग्य उपन्यास है जिसके लिए गिरीश पंकज हिन्दी व्यंग्य की दुनिया में पहचाने जाते हैं । “पॉलीवुड की अप्सरा” का क्रम तीसरा है । इससे पहले भी उनके 2 उपन्यास काफी चर्चित रहे हैं- पहला “मिठलबरा की आत्मकथा” और दूसरा “माफिया” । माफिया पर उन्हें राष्ट्रीय स्तर का "लीलारानी स्मृति पुरस्कार" भी हस्तगत हो चुका है । श्री गिरीश वर्तमान में अनुवाद की स्थापित पत्रिका “सद्भावना दर्पण” के संपादक हैं । रायपुर के हर मंचों में पाये जाते हैं । क्योंकि रहते हैं सभी के दिलों में । न काहू से दोस्ती है उनकी, न काहू से बैर । गाँधी जैसे खद्दरधारी । कबीर जैसे व्यापारी । तन से सुभाष जैसे और मन से लोहिया जैसे हैं वे । हमने उन्हें किसी से उलझते हुए आज तक नहीं देखा । पर जब लिखते हैं तो बडे-बडे कलाबाज संपादक भी उनसे दूर रहने में अपनी भलाई समझते हैं । जाने कब उनके लेखन में कौन उलझ जाये ? सृजन-सम्मान को उन्होंने लगातार अपना रचनात्मक योगदान दिया है । हम उनकी सद्यः प्रकाशित कृति के लिए एक ट्रक बधाई भेजना चाहते हैं ।
क्या कहा ? आप भी उन तक अपनी बधाई पहुँचाना चाहते हैं । तो लीजिए ना, ये रहा उनका पता- श्री गिरीश पंकज, संपादक, सद्भावना दर्पण, जी-31, न्यु पंचशील नगर, रायपुर, छत्तीसगढ, भारत, 492001 । E-mail : girispnkj@yahoo.co.in। आप अंतरजाल पर उपन्यास रिलीज होने की तिथि भी जानना चाहते हैं ? अरे, हम तो उनसे पूछना ही भूल गये। सब्र करिये ना जरा । हम उन्हें पूछ कर आपको ई-मेल कर देंगे । हम पर विश्वास है ना ? अच्छा-अच्छा, है । तब तो क्या कहने । आज के लिए इतना ही । आपका दोस्त-जयप्रकाश मानस

1 टिप्पणी:

अनुनाद सिंह ने कहा…

जयप्रकाश जी , आपका स्वागत है , अभिननदन है !

पहले आपका जाल-स्थल और रचनाशीलता देखकर मन पुलकित हो गया था ; अब आपको चिट्ठा-जगत मे पाकर अपार हर्ष हो रहा है | मेरा मन बार-बार यही पूछ रहा है - " आये इतै न कितै दिन खोये " |

अनुनाद